कहानियों का सफ़र: अमनदीप सिंह

हाल ही में, कहानियों की नौका में तैरते अमनदीप सिंह बच्चों से लेकर बड़ो तक के पसंदीदा चेहरा बनके उभरे हैं।अमनदीप की कहानियाँ लोगों की ज़िंदगी से जुड़ी हुई और प्रेरणा से परिपूर्ण होती हैं। कभी यह कहानियाँ सड़क चलते इंसान से जुड़ी होती हैं तो कभी इनमें हम खुद को काल्पिनिक पात्रों के रूप में देख पाते हैं। इन्ही कहानियों के सफ़र को जानने के लिए हम मिले कहानीकार अमनदीप सिंह से।

अमनदीप ‘एक कहानीकार’ के पीछे की कहानी क्या है?

मेरे कहानीकार होने के पीछे कोई बड़ी कहानी नहीं है। बचपन से ही मुझे कविताओं और कहानियों का शौक था। मेरे पताजी और दादाजी बहुत-सी कहानियाँ सुनाते थे। स्कूल में मैं पिताजी की लिखी-सुनाई कहानियाँ लेकर पार्टिसिपेट करता। जब स्टेज मिला तो न जाने वह कहानियाँ कैसे बाहर आने लगीं। बिलकुल वैसा ही था – जैसे मासूम बच्चे के डाँट खाने पर सब बाहर आ जाता है।

इन कहानियों के किरदार आपको कहाँ से मिलते हैं?

मेरी कहानियों के किरदार हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी से ही आते हैं। मैं किसी को देख लूँ, मिलूँ, या मन ही मन महसूस कर लूँ तो वह कहानी का हिस्सा बन जाता है। हो सकता कि यह बातें जो हम अभी कर रहे हैं यह भी कोई कहानी बन के निकल आए किसी दिन।

आपकी कहानियाँ किस हद तक आपको और लोगों से अलग करती हैं?

मेरी कहानियाँ किसी से अलग नहीं होती – कुछ ‘यूनिक’ नहीं है। एकदम साधारण और रिलेटेबल हैं। यही वजह होती है कि यह कहानियाँ लोगों को पसंद भी आती हैं और लोग मेरी कहानियों में कहीं न कहीं खुद को देखते है। उनमें वह अपने जज़्बात को पाते हैं – जो वह महसूस करते तो हैं लेकिन कभी किसी को बता नहीं पाते।

‘अमनदीप’ को सब जान रहे हैं? आप खुद को कितना जान चुके हैं?

मुझे खुद को जानना बहुत बाकी है। एक-दो लाइन लिखी थी कभी जो मैं हमेशा कहता भी हूँ – “सब दौड़ में हैं और मैं खोज में हूँ। और ये खोज तब तक जारी रहेगी जब तक साँसे चल रही हैं।” क्या कहानियाँ सुनने-सुनाने वाले लोग कहीं खो-से गए हैं? मैं ऐसा नहीं मानता। हाँ, कहानियाँ सुनने का तरीका ज़रूर बदला है। और बदलना भी चाहिए क्योंकि बदलाव ही दुनिया का कानून है। नानी-दादी से सुनी जाने वाली कहानियाँ अब लोग सोशल मीडिया, यूट्यूब से सुनते हैं। हम सभी कहानियाँ सुनते ज़रूर हैं और हम सब कहानियों का हिस्सा भी बनना चाहते हैं क्योंकि हम सब एक कहानी की तरह ही तो रहते हैं।

क्या कहानियों की भूल-भुलैया में अब श्रोता ही वक्ता हैं और वक्ता ही श्रोता का किरदार निभा रहे हैं?

जी, श्रोता और वक्ता का जो संबंध है यह बिल्कुल दो तरफ़ा होता है। एक वक़्त में जब आप कहानी सुना रहे हों और दूसरी तरफ किसीकी कहानी सुन रहे हों या किसी की कहानी का हिस्सा बन रहे हों तो वह रिश्ता कायम रहेगा। जैसे मैंने कहा कि बदलाब ही जीवन का कानून है। वक़्त-बेवक़्त वह ऊपर नीचे होता ही रहेगा। कभी श्रोता वक्ता बन जाएगा तो कभी वक्ता श्रोता, पर आखिरकार वह दोनों एक ही तराज़ू के दो पहलू हैं।

फिल्मों की कहानियाँ और अमनदीप की कहानियों में क्या अंतर है?

सच-सच बताऊँ तो यह तो मुझे भी नहीं मालूम। मैं वह कहानियाँ लिखता हूँ जो मुझ तक आती हैं। ऐसा नहीं हैं कि मैं लिखने बैठता हूँ या कुछ और। यह कहानियाँ खुद आ कर दस्तक देती हैं और फ़िल्मी कहानी का मुझे पता नहीं वह कैसे लिखी जाती है।

आप अपने चाहने वालों और न चाहने वालों को कैसे संभालते हैं?

जो मेरे चाहने वाले हैं और न चाहने वाले हैं मैं उन्हें एक ही तरीके से प्यार करता हूँ। चाहने वाले मुझे हिम्मत देते हैं कि जो तुम कर रहे हो वह शायद बहुत ही अच्छा है। उनकी ज़िंदगी में एक बदलाब या मुस्कराहट ला रहा है। न चाहने वाले विश्वास दिलाते हैं कि जो तुम कर रहे हो वह अच्छा तो है लेकिन और अच्छा हो सकता है। तो दोनों को मैं पूरी नम्रता से संभालने की कोशिश करता हूँ।

कहानियों से आगे कितनी और रेस बाकी है?

रेस तो नहीं कहूँगा। कहानियों के साथ अभी सफ़र शुरू हुआ है। और रास्ता बहुत लंबा है।

आपकी सबसे बेहतरीन और पसंदीदा कहानी कौनसी है और क्यों?

‘मुस्कुराते रहो – ज़िंदगी इतनी भी बुरी नहीं’ मेरी सबसे पसंदीदा कहानी है क्योंकि वह एक ऐसी उम्मीद बाँटती है जो शायद लोग अपने पास रखते हैं। वो जानते हैं ‘जो ये हैं वो हैं’ और शायद इसीलिए वह मुझे बहुत पसंद है।


Ashish Richhariya

Ashish Richhariya
Ashish loves to write poems to express himself. It’s his passion for the written verse that drives him towards understanding it better. He always keeps a diary on himself — inspiration is everywhere after all.

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